|| ज्ञान पररस मररस योगी || - बहुउद्देशीय परमपूज्य परमात्मा एक सेवक मंडळ, मोहाडी

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गुरुवार, ४ मार्च, २०२१

|| ज्ञान पररस मररस योगी ||

 ज्ञान  पररस  मररस  योगी



  

      सन १९८३ की घटना है । महानत्यागी बाबा जुमदेवजी एक दिन अपने निवास स्थान पर रात को अपने आसनपर सोए थे नींद में उन्हें साक्षत्कार दिखा उस में उन्हें कोई भी व्यक्ती अथवा कोई भी वस्तु नही दिखायी दी । उन्हें मात्र बडे-बडे अक्षर लिखे हुए दिखे । उनके मुख से निरंतर वही-वही शब्द बाहर निकल रहे थे । वे शब्द थे "ज्ञान पररस मररस योगी'' । करीब करीब आधा घंटे तक वे ये शब्द पढ रहे थे उसके बाद उनकी नींद खुली । उसके बाद भी उनके मुख से वही शब्द बाहर निकल रहे थे । इसलिये बाबांने डायरी में उसी समय उन शब्दों को लिख लिया । ये शब्द यद्यपी उन्हें प्रत्यक्ष में दिखे फिर भी वे शब्द परमेश्वर ने ही उनके मुखकमल से बाहर निकाले थे। 


        उस पर बाबांने गहन विचार किया, और बाद में वे सबको बताने लगे कि, जिस तरह परिस नाम की वस्तू का, लोहे को स्पर्श होने से वह लोहा सोना बनता है। उसी प्रकार ज्ञान यह परिस के समान है । इस ज्ञान को जो स्पर्श करेगा वह सोना बन जाएगा । अर्थात वह महानत्यागी बनता है। लेकिन मानवी जीवन में दैवीशक्ती के लिये मन की एकाग्रता, एक चित्त, एक लक्ष, एक भगवान इसकी अति आवश्यकता है । यही दैवी शक्ती का उगमस्थान है । परमेश्वर को सामने रखकर बाबांने दिये हुए "मरे या जिये भगवत् नामपर" इस तत्वानुसार परमेश्वर के नाम पर मरने पर भगवंत भक्त के पीछे खड़ा होता है, और परिस जैसा रस तैयार होकर वह ज्ञानी बनता है । यदि वह मरा नही तो रस तैयार नही होगा । इसलिये मनुष्य मरने पर ही उसका रस तैयार होता है और रस बनने पर वह व्यक्ती योगी समान बनता है । यह इस मार्ग के सेवकों को प्रत्यक्ष अनुभव है । परमेश्वर के नामपर मरने वाली व्यक्ती बाबांके दिये हुये तत्व शब्द नियम से चले तो वह योगी बनता है अन्यथा उसे कितना भी किताबी ज्ञान होगा फिर भी वह योगी नही बन सकता । उसे परमेश्वर का साथ होना जरूरी है । कर्तव्य से आत्मानुभव आता है । आत्मप्रचीती होती है, आत्मज्ञान बढता है, तभी वह ज्ञानी पुरूष होकर योगी बनता है, यह सिध्द होता है 


|| 🙏🙏नमस्कार जी 🙏🙏||

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