एक भगवंत की प्राप्ती
पिछले प्रकरण में दर्शायें अनुसार बाबा जुमदेवजींने बाबा हनुमानजी को बिनती करने पर प्रतिज्ञा की. मैं आज से किसी भी देवता को नही मानूँगा । यह बताने पर बाबांने उस दर्जी समाज की महिला का संपूर्ण दुःख दूर किया । तत्पश्यात बाबां सोचने लगे की इसी हनुमानजी के मंत्रोच्चार से उस स्त्री का दुःख दूर हुआ, परंतु जो उसी मंत्र से प्रतिज्ञा के पूर्व नही हुआ।बाबाने प्रतिज्ञा किये अनुसार उस शक्ती का संशोधन करना प्रारंभ किएं । उन्होने भगवान बाबा हनुमानजी के समक्ष प्रश्न रखा कि, हे भगवान बाबा हनुमानजी संसार में ऐसी कौनसी शक्ती है, जो सैतान को एक पल में निकाल सके। भूत किसे कहे और भगवान किसे कहे । इसका स्पष्टीकरण हमें समझा दो। इस समय बाबा स्वयं निराकार में आये और परमेश्वरी (बाबा हनुमानजी) बाबां के मुखकमल से ऐसे शब्द निकले कि, वह एक ही परमेश्वर है, जिसने इस सृष्टि का निर्माण किया है । वह एक जागृत शक्ती है जो निराकार है। वह चोबीस घंटे चैतन्य है। उसे प्राप्त करने के लिए पांच दिन हवन करना पडेगा " तत्पश्चात कुछ देर में बाबाने उस निराकार अवस्था में ही घरके लोगों को संबोधित किया कि परिवार के लोग सुनों, हम कलसे पांच दिन हवन करेंगे।
निश्चितीनुसार दुसरे दिन से बाबानें पांच हवन को प्रारंभ किया रोज एक इस प्रकार सायंकाल में शुरूवात की । इस दिन श्रावण वद्य प्रतिपदा थी और वह शुक्रवार था। इस दिन की तारीख २० अगस्त १९४८ थी। पांचवे दिन हवन समाप्त होते ही । बाबा का ब्रम्हांड चढा । वह देहभान भूल गये और निराकार अवस्था में आये । इस अवस्था में वे बहुत बहुत आक्रांत कर रोने लगे तब परिवार के सभी लोग उपस्थित थे उस निराकार अवस्था में बाबा के मुखकमल से शब्द बाहर आये कि, “मैं कहाँ आ गया हूँ । ऐसा कहकर पुनः जोर-जोर से आक्रांत कर रोने लगे।घर के लोगों को संबोधित कर बोले घरवाले सुनो, मैं कहाँ आ गया हूँ। सेवक भगवान बन गया। यह सुनकर और बाबा को रोते देखकर घर के लोग घबराये और उन्हें बाबा चुप हो जाओ ऐसे मनाने लगे। परंतु बाबा निराकार अवस्था में होने से उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं था । मै कहा आ गया हूँ। ऐसा कहते बाबा लगातार एक से डेढ़ घंटे तक आक्रांत कर रोते रहे। तत्पश्चात वे शांत हुए. निराकार अवस्था से वे देहमान अवस्था में आये। उसके बाद उन्होने खाना खाया और विश्राम किया। लेकिन वे सुस्ती में ही थे।
दुसरे दिन यानि छॅँटवे दिन श्रावण वद्य षष्ठी थी । उस दिन १९४८ साल के अगस्त माहे की २५ तारीख दिन बुधवार था। इस दिन बाबा सुस्ती में ही होने से हवन की समाप्ती समझकर घर के लोगों ने हवन किया । हवन समाप्त होते ही पुनः बाबा का शरीर घुमने लगा । वे देहभान भूल गये । उनका ब्रम्हाण्ड चढा और वे निराकार स्थिति में आयें कुछ समय बाद उनके मुखकमल से शब्द बाहर निकले कि इस देश में जितने देवता को मानते है । उदा हिन्दु धर्म के रामकृष्ण, शंकरजी, सभी देवियाँ, देवता, ब्रम्हा, विष्णु महेश, दत्त, सभी अवलिया उदा. गजानन महाराज, साईबाबा, उसी प्रकार अन्य धर्मो के दैवत जैसे अल्ला, येशु खिस्त, महावीर जैन, बुध्द इत्यादि से सब उन्हें एक के बाद एक आकर दर्शन दे रहे है। ऐसे वे निरंतर बडबडाते रहे । तत्पश्चात विश्व के समस्त देव उनके शरीर में एक के बाद एक आकर उन्हें अपना-अपना परिचय देने लगे। इनमें शेषनांग ने भी अपना परिचय दिया । यह क्रिया बहुत देर तक चालू थी ।
यह संपूर्ण क्रिया पूरी होने पर उनके शरीर में अंत मे एक भगवान आये। उन्होने अपना परिचय दिया। इस समय बाबा के मुखकमल से ऐसे उद्गार निकले कि, "मैं सबका एक भगवान हूँ ? सेवक, तू मुझे कहाँ ढूँढ रहा है। मैं चोबीस घंटे तेरे पास हूँ। जो क्षण मैं तुझसे छुट जाऊंगा, तेरा शरीर मृत्यू हो जायेगा। तब बाबा को लगा कि, "मैं कितना पागल हूँ । भगवान मेरे पास होकर मैं उसे ढूंढ रहा हूँ। यह सारे शब्द बाबा के कानोंपर पड़ते थे। वे देहभाने थे। फिर भी उन्हे वह समझ मे आता था।
कुछ समय पश्चात् उसी निराकार अवस्था में रहते हुए एक पल में उनकेही मुखकमल से पुनः ऐसे शब्द निकले कि, "सेवक मैं भगवान हूँ | तू मानव है । मैं जानता हूँ, मानव यह बेइमान है उनमें से तू एक मानव है । भलेही तूने मुझे प्राप्त किया, मैं भगवान हूँ मैं मानवपर कदापि विश्वास नही करता। यह शब्द बाबा के कानों में पडे, तब वे निराकार अवस्थामें ही विचारमग्न हुए। भगवंतने मुझे बेईमान कहा ऐसा उन्हें बराबर लगता रहा । उन्होने बहुत देरतक विचार किया और उसका जवाब वे ढूँढने लगे । कुछ समय बाद उन्हे उत्तर मिल गया कि इसका जवाब 'इमान” यही है। और इमान ही भगवान है ऐसा समझ उन्होंने भगवान के पास प्रतिज्ञा की कि, 'हे भगवान मैं जीवन में इमान रखूगा और सत्य सेवा करूँगा । ऐसा आपको सत्य वचन देता हूँ । इसके बाद फिर से विचार किया कि, चोबीस घंटे मानव के पास रहनेवाली ऐसी कौनसी शक्ती है जो समाप्त होने पर शरीर मृत होता है। इस पर विचार करने पर उन्हे "आत्मा” यह शक्ती याद आयी । इसलिए पुनः उनके मुख कमल मे से ऐसे शब्द निकले कि “परमात्मा एक ! मरे या जिये भगवत् नामपर। यह बाबा के वचन थे, जो उन्होने एक परमेश्वर को दिये । पुनः कुछ समयबाद बाबांकेही मुखकमल से ऐसे शब्द बाहर निकले कि, दुःखदारी दूर करते हुये उध्दार । इच्छा अनुसार भोजन। यह दो वचन परमेश्वरने बाबा को दिये ऐसा उन्हे लगा ।
कुछ देर शांत रहकर उस निराकार अवस्थामें ही उन्होने परिवार के लोगों को संबोधित किया कि, “परिवार के लोग सुनो, इस परिवार के लोग सभी पूजा बंद करके एक ही भगवान को माने। “ऐसा उन्होने आदेश दिया। तत्पश्चात परिवार के लोगों ने बाबा को आश्वासन दिया कि। बाबा आज से हम एकही भगवान को मानेंगे। तत्पश्चात बाबांकी निराकार (ब्रम्हांड) अवस्था समाप्त हई । परंतु वे निराकार स्थिती में ही थे। तब से घर के लोग एकही भगवान को मानने लगे । सभी देवताओं की पूजा करना उन्होने बंद किया । उन्होने मंदिर जाना बंद किया ।
इस प्रकार बाबाने "एक भगवान की प्राप्ती की वह दिन श्रावण पद्य षष्ठी होने के कारण प्रत्येक वर्ष इस दिनको समस्त सेवक एक भगवंत का प्रगट दिन' के रूप में अपने - अपने घर हवन कार्य कर वह दिन मनाते है। इसके अलावा मानव-धर्म का वह सबसे बड़ा त्यौहार है ऐसा समझा जाता है।
उस दिन से महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को बाबा हनुमानजीने सही माईने एक परमेश्वर का परिचय कर दिया । तब से महानत्यागी बाबा जुमदेवजी बाबा हनुमानजी को भगवंत न मानते अपना गुरू मानने लगे। सृष्टि निर्माता परमेश्वर के प्रतिक के रूप में कोई भी निशान नही है। किसी भी धर्म के अनुसार परमेश्वरका कुछ तो प्रतिक होना आवश्यक है । हिंदू धर्मानुसार गुरूकी पूजा करना यानि भगवंत की पूजा करना है । ऐसा समझा जाता है, बाबा जुमदेवजी यह हिन्दु धर्म के होने से उन्होने अपने गुरू बाबा हनुमानजी इनका प्रतिक एकही भगवान के रूप में लोंगों के समक्ष रखा है | भगवंत व्यक्ती न होकर वह चैतन्य शक्ती है। वह चोबीस घंटे जागृत होकर निराकार है । बाबा हनुमानजी यह भगवंत नही ऐसा स्पष्ट किया । इस मार्ग में हवन को महत्व है । परंतु मानव का ध्यान भगवंत की ओर रहना चाहिए इसलिए हवन करते समय अथवा हर दिन पूजा करते समय बाबा हनुमानजी का प्रतिक रखा है । जिस कारण मानव के मन में भगवंत के विषय में जागृति निर्माण होगी और मानव सदैव भगवंत का मनन चिंतन करता रहेगा।
भगवान बाबा हनुमानजी ने महानत्यागी बाबा जुमदेवजी को अनेक देव देवताओं का परिचय करा दिया । यह हमने उपर देखा है उन सभीने इस पृथ्वीपर जन्म लिया है । उन्होने भगवंत के प्रिय पसंदीदा कार्य किये है, इसलिये वे परमेश्वर' इस नाम से विख्यात हुए और इस दुनिया की भोली जनताने उन्हे परमेश्वर मानकर पूजा करने लगे । परन्तु वे परमेश्वर नही थे । तो वे मानव ही थे । इसलिए जनता उनके जैसा ही कार्य करें । उन्हें परमेश्वर समझ पूजा न करे कारण परमेश्वर यहाँ एकही है । जो सृष्टि का निर्माता और विश्व का विधाता है।
|| 🙏🙏नमस्कार जी 🙏🙏||
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